भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सदस्य वार्ता:Animesh majumdar

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कड़ी शीर्षक जी लेने की जिद है

गीत बनाने की जिद है !
आज मुझे गीत बनाने की जिद है !
हर अनुभव हर पहलु की आज गीत बनाने की जिद है !

दीवारों से बतियाने की जिद है !

दिए बहुत से जलते है !
पर आज अंधियारे में रहने की जिद है !

बहुत कुछ मन में है जो !
आज बाहर निकालने की जिद है !

हर पल हम घुटते थे मन में !
पर आज जीने की जिद है !

दीवारों से बात करने !
मन का आपा खो देने !
आज हमें क्योँ जिद है ?

खो गया है मन का आपा !
हमें इस बात की फिकर नही !
जिद है आज हमें गीत बनाने की जिद है !

ये दुनिया

अदभुद दुनिया का यह वर्णनं करते है !

आप

क्यों करते है ?

यह समझ सका न मै आज !

यह चमकीला सूरज लगता कितना प्यारा है !

रात की चान्दिनी रात के तारे लगते कितने प्यारे है !

क्यों लगते है ?

प्यारे ये चाँद और सितारे !

क्यों होता है दिन और क्योँ होता है रात !

यह समझ सका न आज मै यह समझ सका न आज मै !