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सदाक़त ही सदा क़ाइम रहेगी / हरिराज सिंह 'नूर'
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सदाक़त ही सदा क़ाइम रहेगी।
कहानी ज़िन्दा ये लाज़िम रहेगी।
तिरे कूचे में है रौनक़ जो प्यारे,
मिरे हक़ में यही जालिम रहेगी।
मिरे अशआर को तुम मत भुलाना,
तुम्हारी भी ज़ुबां ख़ादिम रहेगी।
बयां हो दर्ज मेरा ग़ैर मुमकिन,
ये दुनिया जब तलक हाकिम रहेगी।
करोगे ‘नूर’ तुम जिस पर भी अहसां,
उसी की ज़ात तो नादिम रहेगी।