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सदा देकर बुलायेगा तो रुक-रुक के चलेंगे हम / प्रणव मिश्र 'तेजस'

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सदा देकर बुलायेगा तो रुक-रुक के चलेंगे हम।
वही जब मोड़ आएगा तो रुक-रुक के चलेंगे हम।

फ़लक से कर रहा पीछा मेरा ये चाँद भी देखो
अगर ऐसे सताएगा तो रुक-रुक के चलेंगे हम।

दबे होंठो पे पेंसिल रख कभी वो मुस्कुराकर, कल
नज़र अपनी झुकाएगा तो रुक-रुक के चलेंगे हम।

मेरा वो आशियाँ अपना जहाँ मां-बाप का साया।
विदाई पर रुलाएगा तो रुक-रुक के चलेंगे हम।

बिछड़ना रूह का तेजस कभी जब इश्क़ से होगा
ख़ुदा भी गर बुलाएगा तो रुक-रुक के चलेंगे हम।