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सनम मेरा सुख़न सूँ आशना है / वली दक्कनी
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सनम मेरा सुख़न सूँ आशना है
मुझे फि़क्र-ए-सुख़न करना बजा है
चमन में वस्ल के हर जल्वए-यार
गुल-ए-रंगीं बहार-ए-मुदद्आ है
न बख्श़े क्यूँ तेरा ख़त जिंद़गानी
कि मौज-ए-चश्मए-आब-ए-बक़ा है
तग़ाफ़ुल ने तिरे ज़ख़्मी किया मुझ
तेरी ये कमनिगाही नीमचा है
नहीं वाँ आब, ग़ैर अज़ आब-ए-ख़ंजर
शहादत गाह-ए-आशिक़ कर्बला है
ग़नीमत बूझ मिलने कूँ 'वली' के
निगाह-ए-पाकबाज़ाँ कीमिया है