सनम यह न देखो कहां क्या कमी है
बहुत है कि जी तो रहा आदमी है
बिछुड़ के भी मुड़-मुड़ अगर देखना है ,
तो क्या दूर जाना बहुत लाज़मी है !
यूँ चुपचाप बैठे गुज़ारा न होगा ,
कि क्या गर्दिशे-ज़िन्दगी यूं थमी है !
करें साफ़ आओ भी मिलजुल के दोनों ,
ये जो धूल सी ज़िन्दगी पे जमी है !
चलो बीता सावन कि फिर भी आ जाओ ,
अभी भी फ़िज़ा में बहुत सी नमी है !