सन्धान-साधना / बुद्ध-बोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
ओम्हर तरुण गोतम बौआइत छला शान्तिहिक खोज
कत पंडित दार्शनिक साधु संबोधक लग नहि ओज
अमृत तत्त्व की? परम सत्य की? करइत तकर तलास
जप तप कत पुनि क्रिया-साधना व्रत-उपवास पचास।।25।।
घुमइत फिरइत वन-जंगलमे वैरागीकेर टोल
शास्त्र-पुराण पढ़ल पंडित लग सुनल दर्शनक घोल
यम-नियमक पालन नित करइत साधल कत हठयोग
किन्तु न बाधल चंचल चित्तक भ्रान्ति, न शान्ति सुयोग।।26।।
विधि-निषेधमय कर्मयोग, सर्व मिथ्याहुक बोध
कोनहु इष्टकेँ बुझि विशिष्ट भजनहु कय हृदय न शोध
तत्त्व पिआस मेटा नहि सकले, सिद्ध अर्थ नहि भेल
मानस अवसादक अवसान न, नहि प्रसाद उर मेल।।27।।
अन्त थाकि थुकि श्रान्त-क्लान्त चित उरुबिल्वक वन जाय
आजुक बुद्धगया जे कहबय, आसन देल लगाय
चल दल पीपर तरुतर सहसा चित्त अचल थिर भेल
विनु उपाधि लागल समाधि सभ आधि-व्याधि बिति गेल।।28।।
थिर मन भय दृग मूनि कदाचित् किंचित संचित ध्यान
अनायास निःश्वास रुद्ध, मन शून्य अनन्य विधान
केहन समाहित बोधिसत्वकेर जन्मान्तरक वितान
दिवस गणित नहि, मास विदित नहि, वर्षहु बितल न भान।।29।।
आतप तपा सकल नहि, वर्षा भिजा न सकले रंच
पौषक पाला गला न प्रकृति-विकृतिहुक चलल प्रपंच
कत बाधा साधना - क्षेत्रमे कत मारक उत्पात
किन्तु न डिगा सकल, पर्वत पर नहि बिड़रो आघात।।30।।
कते विघ्न-बाधना पार कय राजस तामस रोध
वर्ष-वर्ष साधना सिद्ध कय पाओल सात्त्विक बोध
जगतक दुःख-यातना जतबा तकरा करइत शोध
शान्ति अहिंसा दया क्षमा समता निर्वाण प्रबोध।।31।।