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सपना एकदम हरा / सांवर दइया
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कोख में बीज
सड़क के नहीं
मिट्टी के होता है
और वही थामती है पानी
जब बरसता है पानी
पीती है वह बूंद-बूंद
कोख में उसकी
जी उठते हैं सुप्त बीज
सूनी सपाट धरती पर
प्रत्यक्ष दिखता हैं
सांस लेता एक सपना
एकदम हरा !
अनुवाद : नीरज दइया