सपने / जयप्रकाश कर्दम
मेरे पास सपने हैं
भांति-भांति के सपने
छोटे सपने बड़े सपने
पुराने सपने नए सपने
गांव से शहर के सपने
प्रलय से प्रहर के सपने
सन्नाटे से शोर के सपने
रात्रि से भोर के सपने
ऊर्जा और उमंगों के सपने
इंद्रधनुषी रंगों के सपने
रोमांच और राज के सपने
सिंहासन और ताज के सपने
जंगल से आबादी के सपने
गुलामी से आजादी के सपने
बहुत जतन से
सम्भालकर रखा है मैंने
इन सपनों को
इन सपनों में
आशाओं की आहट है
जिंदगी की गुनगुनाहट है
नहीं चाहता मैं अमानवीयता के
कांटों से लहुलुहान हों या
अन्याय की शिलाओं से टकराकर
चूर-चूर हो जाएं ये सपने
ये सपने मरूस्थल के प्रपात हैं
बेशकीमती सौगात हैं
पीछे रह जाते हैं सदैव
जिंदगी की दौड़ में वे लोग
जिनके पास नहीं होते सपने
खत्म हो जाता है मनुष्य
छोड़ देता है जब सपने देखना
या भूल जाता है देखना सपने
स्वप्नहीनो, आओ,
अपनी-अपनी पसंद के सपने ले जाओ
इन सपनों को तुम
अपनी आंखों में भर लो
इनसे बातें करो, खेलो
गीत बनाकर तुम इन्हें गाओ
इन सपनों में खो जाओ
एक दिन ये सपने
फूल से खिल जाएंगे
हकीकत में बदल जाएंगे।