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सपने / पूरन मुद्गल
Kavita Kosh से
मैंने
सपनों के गुब्बारे
उड़ाए
वे / आकाश में
विलीन हो गए
फिर
इतना संतोष / कि वे कभी
कहीं तो उतरेंगे ।