भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने / पूरन मुद्गल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने
सपनों के गुब्बारे
उड़ाए

वे / आकाश में
विलीन हो गए

फिर

इतना संतोष / कि वे कभी
कहीं तो उतरेंगे ।