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सपने / लैंग्स्टन ह्यूज़ / मणिमोहन मेहता
Kavita Kosh से
ज़रा तबियत से
थामे रहो सपने
यदि मर जाते हैं सपने
तो जीवन
टूटे पँखों वाली
चिड़िया हो जाता है
जो उड़ नहीं सकती।
ज़रा तबियत से
थामे रहो सपने
जब विदा हो जाते हैं सपने
तो जीवन
एक बन्ध्या खेत बन जाता है
बर्फ़ से जमा हुआ।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन