तुम्हारे लिए मुश्किलें बढ़ाती-बढ़ाती 
ख़ुद के लिए मुश्किलें पैदा कर ली हूँ,
पल-पल करीब आते-आते 
ज़िन्दगी से ही करीबी ख़त्म कर ली हूँ,
मैं विकल्पहीन हूँ 
और अपनी मर्ज़ी से 
इस राह पर बढ़ी हूँ 
जहाँ से सारे रास्ते बंद हो जाते हैं,
तुम्हारे पास तो तमाम विकल्प हैं 
फिर भी जिस तरह तुम 
ख़ामोशी से स्वीकृति देते हो 
बहुत पीड़ा होती है
अवांछित होने का एहसास दर्द देता है,
शायद मुझसे पार जाना कठिन लगा होगा तुम्हें
इंसानियत के नाते
दुःख नहीं पहुँचाना चाहा होगा तुमने 
क्योंकि कभी तुमसे तुम्हारी मर्ज़ी पूछी नहीं
जबकि भ्रम में जीना मैंने भी नहीं चाहा था,
जानते हुए कि 
सामान्य औरत की तरह मैं भी हूँ 
जिसको उसके मांस के 
कच्चे और पक्केपन से आंका जाता है
और जिसे अपने सपनों को 
एक एक कर ख़ुद तोड़ना होता है
जिसे जो भी मिलना है
दान मिलना है
सहानुभूति मिलनी है 
प्रेम नहीं
मैंने भी 
सपनों की लम्बी फेहरिस्त बना ली है, 
एक औरत से अलग भी मैं हूँ 
ये सोचने का समय तुहारे पास नहीं
सच है मैंने अपना सब कुछ 
थोप दिया था तुमपर,
ख़ुद से हारते-हारते 
अब सपनों को हारने लगी हूँ
जैसे कि जंग छिड़ गया हो मुझमें
मैं जीत नहीं सकती तो 
मेरे सपनों को भी मरना होगा !
(फरवरी 15, 2012)