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सफ़र के अन्त में जब / जया जादवानी
Kavita Kosh से
आग थी इतनी कि
रह-रह कर ख़ुद को जलाने लगती
जुनून था इतना कि
कुछ नहीं दिखता
लक्ष्य को छोड़कर
कोशिशें इतनी कि
छोड़ी नहीं कोई कसर
कमी रह गई होगी फिर भी
कुछ न कुछ ज़रूर
कि सफ़र के अन्त मेम जब
खोला अपना झोला
हर चीज़ थी वो जो काम आती
बचे हुए वक़्त में
सिर्फ़ तुम न थे जाने कैसे
अपना-आप खाली रह गया।