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सफ़र के बीच वो बोला कि अपने घर जाऊँ / सिदरा सहर इमरान

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सफ़र के बीच वो बोला कि अपने घर जाऊँ
अँधेरी रात में तन्हा मैं अब किधर जाऊँ

मुझे बिगाड़ दिया है मिरे ही लोगों ने
कोई ख़ुलूस से चाहे तो मैं सँवर जाऊँ

मिरी जुदाई में गुज़री है ज़िंदगी कैसी
ये जी में आई है इस बार पूछ कर जाऊँ

बता तू कुफ्ऱ कर फ़तवा लगाएगा मुझ पर
ख़ुदा मैं मानूँ तुझे और फिर मुकर जाऊँ

तू सब्ज़ झील के पानी में ढूँढता ही रहे
मैं चाँद ओक में भर लूँ कमाल कर जाऊँ

बला का ख़ौफ़ थमाया है आइनों ने मुझे
मैं अक्स अपना जो देखूँ तो जैसे डर जाऊँ