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सफ़र में रास्ता देखा हुआ मिले, न मिले / सुल्तान अहमद
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सफ़र में रास्ता देखा हुआ मिले, न मिले,
चलेंगे हम तो हमें रहनुमा मिले, न मिले।
बजा नहीं है शिकायत उमस की घर बैठे,
निकलके घर से भी ताज़ा हवा मिले, न मिले।
बनाके अपने ही हाथों को अपनी पतवारें,
इन आँधियों में चलें, नाख़ुदा मिले, न मिले।
सवाल दिल में उठेंगे तो हम उठाएँगे,
जवाब हमको किसी से बजा मिले, न मिले।
चढ़ाके चाक पे हम तो उन्हें बनाएँगे,
जलें चराग तो उसका सिला मिले, न मिले।
हरेक शख़्स मिले बनके आदमी जैसा,
तो ग़म नहीं जो कोई देवता मिले, न मिले।