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सफ़र है, सफ़र में सबर रख के चल / श्याम कश्यप बेचैन

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सफ़र है, सफ़र में सबर रख के चल
कहाँ है तू इसकी ख़बर रख के चल

कहीं तुझको बहका के भटका न दे
तू अपनी नज़र पर नज़र रख के चल

चला ही जो है सच के रस्ते में तो
जवाँ मर्द जैसा जिगर रख के चल

दुआ दिल की है, कोई बोझा नहीं
ज़रूरत नहीं है मगर रख के चल

जो कहना है तुझको वो कह के ही उठ
न दिल में ज़रा भी कसर रख के चल

खिंचा आए काबा जहाँ सर झुके
तू सज्दे में इतना असर रख के चल