सफ़ा-हैरत-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मंदा का पता है रंग आख़िर
न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की
हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर
सफ़ा-हैरत-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मंदा का पता है रंग आख़िर
न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की
हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर