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सबका गान / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय

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(एक)
देखो, देखो कैसे दिन बदल रहे हैं-
ओ मेरे देश के भाइयो!

पूरब के आसमान पर छायी है लाली
होता है प्रकाश तो छँटता है अँधेरा।
खोलो आँखें, देखो
ओ शहीदों की माँ,
नन्हें बच्चों, ओ प्रियतमा!
हत्यारों को अब नहीं मिलेगी क्षमा
जग गयी है ख़ून की धारा
लाखों हाथ आज नाखूनों पर धार चढ़ा रहे हैं।
देखो, देखो कैसे दिन बदल रहे हैं।

आज़ादी का सपना था
गानों में, गल्पों में, गाथाओं में
खिले हैं आज अनोखे रंग के फूल-फूल में
पात-पात में।

जागो, जागो, देखो तो माँ
कारख़ाने के मज़दूर और खेत के किसान
तोड़कर बेड़ियाँ, उड़ा रहे निशान
सारी दुनिया में है, अब नया विधान
कोटि-कोटि कंठ आज गान गा रहे हैं।
देखो, देखो, कैसे दिन बदल रहे हैं।

(दो)
कथनी और करनी एक जैसी हो भाई-
हाँक पड़ी है ऊँचे स्वर में गुरु...गुरु...।
लम्बी-चौड़ी बातें छोड़ो
शीघ्र करो अब यज्ञ शुरू।

जो हैं गरजते-नहीं बरसते
कभी किसी काम न आते
नाटक में भी भीम तभी जँचता है
जब तोड़े दुर्योधन की उरु
हाँक पड़ी है ऊँचे स्वर में गुरु...गुरु।

मुक्त धारा बाँधोगे तो बिजली पाओगे
छोड़ दो वल्गा, अश्वमेध का अश्व बढ़ेगा।

जहाँ पे सब एक समान
सबके लिए सबका रुझान
जहाँ सभी खुद हाथ बढ़ाएँ
अल्ला हरि मारांबुरु!
हाँक पड़ी है ऊँचे स्वर में गुरु...गुरु।