सबका मन अपना दुश्मन है
सोचों की बाहम अनबन है
ख़ुश्क मिजाज़ों से यूँ मिलना
सन्नाटो का ज्यूँ मधुबन है
जब दुख ही दुख का मद्दावा
फिर क्या खुशियों में अड़चन है
जिसके लिये औरो से लड़ी
वो मेरा असली दुश्मन है
जो ग़ैरों को अपना कर ले
समझो उसमें अपनापन है
जो फूलों सा महके देवी
क्या तेरे दिल मे गुलशन है