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सबके सब बहरे / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
Kavita Kosh से
सबके सब बहरे
होठों पर लगे हुये
फौलादी पहरे
किससे क्या कहना है
सबके सब बहरे
राजा का दरबारी
विप्लव का अगुवा
मनमाना खेल रहा
दौलत का फगुवा
डूबा है राजमहल
रंगो में गहरे
हड़तालें ,आन्दोलन
बेमतलब बातें,
सिक्कों पर तुली हुयी
सबकी औकातें
मंजिल तक जाने के
गलियारे सँकरे
भाषण उम्मीदों के
कागजी मसौदे,
महँगी बाजारों नें
खुले आम रौंदे,
सूरज के आँगन में
अँधियारे पसरे।