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सबदां री नदी मांय / नीरज दइया
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म्हैं अंवेर’र राख्यो है
थारै दियोड़ो-
गुलाब ।
जद थूं दियो
म्हैं नीं जाणतो हो अरथ
उण नै लेवण रो ।
नीं जाणतो हो म्हैं
कै किणी रै ई पांती आ सकै है
अणजाण-अचाणचकै कदैई
कोई गुलाब ।
अबै थूं
म्हारै अंतस रै आंगणै
गुलाब रै उण फूल साथै जीवै है
अर म्हारै सबदां री नदी मांय
बैवै है उडीक साथै ।