अपनी जड़ों को कोसता नहीं
उखड़ा हुआ चिनार का दरख्त ।
सरू नहीं गाते शोकगीत ।
अपने बलशाली होने का
दम नहीं भरता बलूत ।
घर बैठने के बाद ही
क्रान्तिकारी लिखते हैं
आत्मकथाएँ
और आत्मा की पराजय के बाद
वे बन जाते हैं
राजनीतिक सलाहकार ।
अपनी जड़ों को कोसता नहीं
उखड़ा हुआ चिनार का दरख्त ।
सरू नहीं गाते शोकगीत ।
अपने बलशाली होने का
दम नहीं भरता बलूत ।
घर बैठने के बाद ही
क्रान्तिकारी लिखते हैं
आत्मकथाएँ
और आत्मा की पराजय के बाद
वे बन जाते हैं
राजनीतिक सलाहकार ।