भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सबेरे के अंजोर / राज मोहन
Kavita Kosh से
बहिरे दिन अगोरे है
अंजोर होवे खात
तकिया नरम गोदी बनावे
थकल कान सुस्तावे खात
सपना बुलावे जिनगी के
सपना द्खावे खात
बिचार कविता के भेस में
संतयावल, ठंडा पक्का पे
फूल के तरे गाड़ल
जैसे ईगो असली मुरदा
अन्तिम बिदाई देवे खात
अब दूसर दिन आइ सके है
हम तैयार बाटी
अक्षर के बन्दूक ले के
कल्पना के छाती
सबेर के अंजोर में
छलनी करे खात।