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सब्बि गोळ / ललित केशवान

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झणि क्य ह्वे
ठनु ब्यो ह्वे
द्यखदरा द्यखदु रैगेनि
पुछदरा पुछदु रै गेनि।
तुणामुणि त
भित्रा गणेशी मूं ह्वेगे छै
बरडाली जरसि छै
कलशा रूप्या कु देलो?
द्या पर ह्या
फर्ज च नौना वळा
दिए जाला, जब आला
ब्योलाए पकड ब्योल्या पल्ला
सब्बि बेदिी मूं चल्ला।
ब्यो कु लग्न, देर नि कन
अधा रात, वेदी बात
पांचै फेररा प्वड़ि छौ
ब्योला जु अड़ि छौ
स्यु अड़ी छौ।
बौंळा बिटाये गेनि
पौणा लठये गेनि
लाठा टुटेन, कुट्ळजडा उठेन
धदोड़ा धदोड़
क्वी कखि लमडे
क्वी कखि पोड़।
लालटेन फुटेन
गैस बुझने
छोर्यों कु किकलाट
छोरौं कु घिघलाट
कज्यण्यों कु बकिबात
जवन्नू तमसु
अर बुढ्यों कु म्वर जात।
इनु कुरच्यो मचि
कि बेदी मा
एक ढुंगू नि बचि
पौणा गोळ
गौणा गोळ
ब्योलि गोळ
ब्योला गोळ।
बामण बेद्यो बेदी मा
ब्वनू हे भै द्वी फेरा रैगे छा
थ्वड़ा हौरि सै लेंदा
जब इथगा सैगे छा।
नौनी बात
रखद्या नाक
कख गेनि सब्बि धै त लगा
कुछ नी त दिल्ला त जगा
मिन बोलि पंडजी
तुम अपणु भलु चन्दा
त तुम सुबेर
रात खुली भोळ ऐजा
इब्हरि तुम बि गोळ ह्वै जा।।