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सब कह रहे हैं जिसको जफ़ा वो सज़ा न हो / कांतिमोहन 'सोज़'

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सब कह रहे हैं जिसको जफ़ा<ref>अत्याचार</ref> वो सज़ा न हो।
जो मुझसे हो गया वो गुनाहे-वफ़ा न हो ।।

हमदम बुरा-भला न कहो चारासाज़ को
मुमकिन है मेरे दर्द की कोई दवा न हो।

ये सोचके किया न कभी अर्ज़ हाले-दिल
वो शोख़ दिलफ़रेब कहीं बेमज़ा न हो।

होने को इस जहान में क्या-कुछ नहीं हुआ
अपना यही नसीब है कुछ भी हुआ न हो।

कहता है तू कि सुनके मुसीबत की वो हंसा
क़ासिद<ref>दूत</ref> तेरी निगाह को धोका हुआ न हो।

अहले-हवस<ref>लोभी,स्वार्थी लोग</ref> के राज में कुछ भी न था हराम
बस एक शर्त थी कि कोई देखता न हो।

हमने सुना है सोज़ भी ख़ासा शरीर<ref>नटखट</ref> था
चुप था मगर ये सोचके अपनी ख़ता न हो॥

शब्दार्थ
<references/>