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सब कुछ नकार दो / जगदीश पंकज
Kavita Kosh से
अर्थहीन स्वीकृतियों से
अच्छा है, खुलकर तुम सब कुछ नकार दो
आश्वासन झूठ से सने
भ्रामक उपदेश दे रहे
क्रन्दन जो मूक फूटता
तुम उसको, विघ्न कह रहे
गन्धहीन पुष्पों से
अच्छा है चुनकर तुम काँटे पसार दो
बड़बोली योजना विफल
आती हमको उजाड़कर
आयातित आपकी क़लम
गाती है कण्ठ फाड़कर
रसविहीन नाटक से
अच्छा है बुनकर तुम यौनिक विचार दो
नैतिकता क़ैद कर रहा
श्रीमान का भ्रष्ट आचरण
ऐसी यह क्या हवा चली
धुएँ का घिरा आवरण
कर्महीन जीवन से
अच्छा है पलकर तुम चैतन्य मार दो