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सब कुछ प्राप्य है उसे / केदारनाथ अग्रवाल

सब कुछ प्राप्य है उसे

जो अप्राप्य है तुम्हें

फिर भी वह दरिद्र है

मनुष्यता के अभाव में

जो तुम्हारे पास अकूत है