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सब के कुछ समझौते है / विजय वाते

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आँखें, पलक भिगोते हैं|
सब के कुछ समझोते हैं|

नींद नहीं उनको आती,
गोली खाकर सोते हैं|

कहने को तो इंसाँ हैं,
पर आँखो से वो तोते हैं|

ऊपर वाले पर निर्भर,
कितने अवसर खोते हैं|

दोष किसे दें हम "वाते",
खेत हमीं ने जोते हैं|