भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सब छै पहिलके ना, घरोॅ में अमानती ना / अनिल शंकर झा
Kavita Kosh से
सब छै पहिलके ना, घरोॅ में अमानती ना
एक बेटी बिना सूनेॅ, घरवा ओसार द्वार।
हास आ विलास कुच्छू कनियो नै लागै कही
बेटी त्यागी जेना होलोॅ जिनगी के तार-तार।
हमरा थानोॅ के देवी हुनकोॅ दुआर गेलै
जगमग जोत जलै, बिहसै धरम-सार।
हमरोॅ चमन छोड़ी हुनकोॅ बागोॅ में पाखी
माली छाती सॉग मारी, देलकै असिर धार॥