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सब तरफ़ खामोशियाँ हैं सब तरफ़ तनहाइयाँ / रंजना वर्मा
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सब तरफ़ खामोशियाँ हैं सब तरफ़ तनहाइयाँ
हैं डरातीं अब हमें क्यों अपनी ही परछाइयाँ
श्याम तेरे इश्क़ में डूबे उभर पाये नहीं
थीं ज़माने की मुहब्बत में न ये गहराइयाँ
बाँसुरी वाले तेरी तिरछी नज़र का वास्ता
कर रहीं मदहोश हमको आपकी रानाइयाँ
बौर खुल कर हैं खज़ाने खुशबुओं के बाँटते
कोयलों की कूक सुन कर झूमतीं अमराइयाँ
आँख खुलती ही नहीं तारी नशा है इश्क़ का
बज रहीं कानों में कान्हा प्यार की शहनाइयाँ