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सब तो न किताबें कहती हैं / भावना सक्सैना

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इतिहास गवाह तो होता है घटनाओं का
लेकिन सारा कब कलम लिखा करती हैं?
जो उत्कीर्ण पाषाणों में, सब तो न किताबें कहती हैं,
सत्ताएं सारी ही स्वविवेक से, पक्षपात करती हैं।

किसके लहू से रंगी शिला, किसका कैसे मोल हुआ
अव्यक्त मूक कितनी बातें, धरती में सोया करती हैं
निज स्वार्थ लिए कोई, जब देश का सौदा करता है
उठा घात अपनों की, धरती भी रोया करती है।

मीरजाफर- सा कायर जब घोड़े बदला करता है
दो सौ सालों तक धरती, बोझा ढोया करती है
ऐसा बोझा इतिहास रचे, सच्चे नायक खो जाते
मिथ्या कृतियां सूरमाओं की सत्ता नकारा करती हैं।

आज़ादी का श्रेय अहिंसा लेती जब-जब
साहसी वीरों के बलिदान हवि होते हैं
नमन योग्य जिनके चरणों की धूलि
स्मृतियां भी उनकी खो जाया करती हैं।

कुटिल कलम इतिहास कलम करती जब
खून के आंसू पत्थर भी रोया करते हैं
लिखने वाले लिख तो देते हैं निराधार
युगों युगों पीढ़ियां, भ्रमित हुआ करती हैं।