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सब फूल काहे गाँव के अतिना उदास बा / कुमार विरल

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सब फूल काहे गाँव के अतिना उदास बा,
अब चढ़ सकी न माथ पर कहवाँ सँवास बा।
बस लुस-फुसा के ओठ असहीं काँपते रही,
अब के बूझो जे गीत में कतिना मिठास बा।
कइसे कहीं कि गाछ ई पुरान हो गइल,
पुरवा से जाके पूछ लीं चंदन सुवास बा।
अब झर गइल के बा ढेर हँसी खिल-खिलाई के,
अँजुरी में लाल देखलीं दहकत पलास बा।
अब इयाद के ढेरी पर केहू रोअते रही,
तनिको छोहा के चूम लीं अतिने हुलास बा।
दिअरी जरा के आँख में बरते रही विरल,
सँऊसे लुटा दीं जिन्दगी अतिने पिआस बा।