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सब सहेंगे मौत से भी मर नहीं जाएँगे हम / विनोद तिवारी


सब सहेंगे मौत से भी मर नहीं जाएँगे हम
एक दिन हाथों में परचम थाम कर आएँगे हम

जिस्म है इस्पात जिसमें हौसले मीनार-से
वक़्त की आँधी से हरगिज़ झुक नहीं पाएँगे हम

तेज़ काँटों से भरी राहों का यह लम्बा सफ़र
मर समझना पाँव ज़ख़्मी हैं तो रुक जाएँगे हम

हम तो बंजर में उगे थे फिर भी ज़िन्दा रह गए
बादलो! बरसो न बरसो अब न मुरझाएँगे हम

जिसको सदियों तक ज़माना झूमकर दोहराएगा
ज़िन्दगी के नाम ऐसा गीत लिख जाएँगे हम