भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सब सिंहासन डोलेंगे / कुमार विनोद
Kavita Kosh से
सब सिंहासन डोलेंगे
गूंगे जब सच बोलेंगे
सूरज को भी छू लेंगे
पंछी जब पर तोलेंगे
अब के माँ से मिलते ही
आँचल मे छिप रो लेंगे
कल छुट्टी है, अच्छा है
बच्चे जी भर सो लेंगे
हमने उड़ना सीख लिया
नये आसमां खोलेंगे