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सब से ही दिल की बात का इज़हार मत करो / अजय अज्ञात

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सब ही से दिल की बात का इज़हार मत करो
इज़हारे-इश्क तुम सरे-बाज़ार मत करो

झूठी वफाएं‚ झूठे हैं वादों के ये महल
इन पर यकीन दोस्तो इक बार मत करो

माँ-बाप की दिखाई हुई राह पर चलो
उन से किसी भी बात में तकरार मत करो

नफ़रत को मुहब्बत से मिटाने का रखो दम
नफ़रत पे नफ़रतों से कभी वार मत करो

अपने तो फिर भी अपने हैं ग़ैरों से भी कभी
‘अज्ञात' भूल कर बुरा व्यवहार मत करो