सब हारेंगे – सब हारेंगे / बी. एल. माली ’अशांत’
हेली(आत्मा) मेरी !
नहीं मच सकेगा घमसान
धूल नहीं उड़ सकेगी आसमान
नहीं जीत सकेगा कोई युद्ध में
सब हारेंगे – सब हारेंगे ।
हेली मेरी !
अबकी बार नहीं देख सकेंगे युद्ध
नहीं लिख सकेंगे युद्ध की विगत
नहीं रच सकेंगे अब की कोई युद्ध के गीत
युद्ध के कवियों का अंत
इंतकाल वक्त के हाथों हो गया है ।
हेली मेरी !
होंगे नहीं कबई अब स्त्रियों के जौहर
नहीं लड़ेंगे अब कभी कबंध से
रणक्षेत्रों पर बस गया है आदमी
युद्ध नहीं होगा ।
हेली मेरी !
नहीं होगी लड़ाई
आदमी और आदमी के बीच
अणु-परमाणु हथियार लड़ेंगे
धरती-पाताल-आसमान में
नहीं जीत सकेगा कोई
सब हारेंगे – सब हारेंगे ।
हेली मेरी !
नहीं हकूमत के लिए कर सकेगा अब कोई
अश्वमेघ
नहीं मांड सकेगा कोई महायुद्ध
अब नहीं बन सकेगा कोई धरती का भूप
अब नहीं उगा ही रहेगा किसी की सत्ता का सूरज
सब जान चुके हैं हकूमत का अर्थ
सब जान चुके हैं लड़ाई के मायने
अपनी खाल से बाहर नहीं आ सकेगा कोई
सब बचाएंगे
बीज का बाजरा ।
अनुवाद : नीरज दइया