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सब होंठों पर मत लाना, कुछ दिल के भीतर रखना / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
सब होंठों पर मत लाना,कुछ दिल के भीतर रखना
वक़्त पलट सकता है इतनी जगह बचाकर रखना
आज तुम्हारी बारी है, कल उसकी भी हो सकती
शर्मिंदा होना न पड़े यह याद बराबर रखना
बातों से ही सुख मिलता है, बातें ही दुख देतीं
काग़ज़ पर लिक्खा खो जाता, मन में लिखकर रखना
कैसे भी हालात बने हों , कितनी भी हो उलझन
अपनी भाषा को फिर भी, अपने से बेहतर रखना
अंधियारा ही सिर्फ़ भगाओ दीपक से तो अच्छा
लग सकती है आग भी इससे ज़रा संभलकर रखना
इंसानियत बचेगी तो ही दुनिया बच पायेगी
लोगों का दुख-दर्द हमेशा सबसे ऊपर रखना