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सभवा बइठल रउरा कवन बाबा / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सभवा बइठल रउरा<ref>आप</ref> कवन बाबा, दहु<ref>दो</ref> बाबा हमरो जनेउ<ref>यज्ञोपवीत</ref> गे माई।
बेदिया बइठल हो बरुआ, रतन के जोत<ref>ज्योति</ref> के माई॥1॥
केई<ref>कौन</ref> देबे<ref>देता है</ref> मूँज जनेउआ<ref>मूँज का जनेऊ। यहाँ मूँज का जनेऊ देने का वर्णन है। प्रचलन के अनुसार उपनयन संस्कार में मूँज की मेखला को जनेऊ की तरह पहनाया जाता है</ref> केई मिरिग छाल गे माई।
केई देवे पियर<ref>पीले रंग का</ref> जनेउआ, बेदिया के बीच गे माई।
रतन के जोत गे माई॥2॥
बराम्हन देलन मूँज जनेउआ, नउआ<ref>नापित, हजाम</ref> मिरिग छाल गे माई।
बाबा देलन पियर जनेउआ, बेदिया के बीचे गे माई।
रतन के जोत गे माई॥3॥
सभवा बइठल रउरा कवन चच्चा, दहु चच्चा हमरो जनेउ गे माई।
बेदिया बइठल हो बरुआ, रतन के जोत गे माई॥4॥
केई देवे मूँज जनेउआ, केई मिरिग छाल गे माई।
केई देवे पियर जनेउआ, बेदिया के बीचे गे माई
रतन के जोत गे माई॥5॥
बराम्हन देलन मूँज जनेउआ, नउआ मिरिग छाल गे माई।
चच्चा देलन पियर जनेउआ, बेदिया के बीचे गे माई।
रतन के जोत गे माई॥6॥

शब्दार्थ
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