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सभा / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
गूंगों ने एक सभा की
जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी पर
विचार किया गया
बहरों ने कहा -- जो बोल नहीं सकते
वे बोलने के बारे में क्या जानें
हमारे समय में कोई इशारों से बात
नहीं समझता
गूंगों और बहरों के बीच जो विमर्श हुआ
उसे ब्रेल-लिपि में दर्ज किया गया
उसे पढ़ने के लिये अन्धों की खोज
की जा रही है