भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सभ्यता-3 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

25.
बदचलन
मरीच देहोॅ केॅ ई
छेकै मिलन।

26.
नाय रे बोलें
नाचवेॅ तेॅ अपनोॅ
अंगिया खोलें।

27.
नवीकरण
नजरी के सामने
अपहरण।

28.
की रे मानव
ई रंग कैन्हें तोहें
भेलेँ दानव!

29.
नेता बेहाल
होलै नी मालोमाल
लोग कंगाल।

30.
करै छै चंदा
या कि धमोॅ के नामें
डालै छै फंदा।

31.
बढ़िया धंधा
धर्मो के नामोॅ पर
करोॅ नी चंदा।

32.
है रखवाली
फूल चुरावैवाला
छै वनमाली।

33.
सदाचरण
घूस लैकेॅ रोजे जे
करै वरण!

34.
अजबे धोखा
साधुओं खोजै छै नी
माल रे चोखा!

35.
छेकै ई चोरी
छीन-छोर-लुटबोॅ
या घुसखोरी।

36.
छेकै ई घात
लोगोॅ में जात-पात
रोटी पै लात।

37.
नर के अंग
नाय जाति के रंग
नै वणोॅ संग।

38.
अजबे लीला
देहोॅ पर शोभै छै
जीन्स ई ढीला।

39.
कैन्होॅ ई छूट
जन्नें देखोॅ सगरो
लूट रे लूट।

40.
भेलै सुधार
घुसखोरी के यहाँ
छै भरमार!