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सभ्यता-5 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’
Kavita Kosh से
56.
बजावोॅ ढोल
कीर्त्तनोॅ सें बेसिये
छै हरिबोल।
57.
इतराबै छै
नंगा देहें केकरा
ऊ बुलावै छै।
58.
देश सुधार
अपहरण आरो
ई बलत्कार
59.
यहेॅ विकास
बिचौलिया के हाथंे
यहाँ निकास।
60.
देशोॅ के हाल
हर कामोॅ के पीछू
यहाँ दलाल।
61.
भेलै नी शोर
कुर्सी पर बहुते
छै घुसखोर।
62.
भेलै प्रभात
खूनी मनोवृत्ति रोॅ
ई शुरुआत।
63.
लगावै भोग
भगवानोॅ केॅ रोजे
भुखलोॅ लोग।
64.
यहेॅ निदान
ठगी के जत्तेॅ करोॅ
जनकल्याण!
65.
अजबे सौदा
परमारथ कम
स्वारथ ज्यादा।
66.
आबेॅ की लाज
झलकै छै देहोॅ पै
कामोॅ के राज।
67.
चलै उघारोॅ
नजरी सें जेकरा
जन्नें निहारोॅ।
68.
छेकै स्वराज
जेकरा जन्नें लूटोॅ
नै एतराज।