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समझौता / अर्चना कुमारी

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आधी रात के सरदर्द में
चहलकदमी करते हैं कुछ चेहरे
जो दिल में बसकर
आंखें निकाल ले गये
कलेजा रह गया जर्द

कोंचती हैं ऊंगलियां
सवालों की
डराती है पदचाप
लौटते कदमों की
गूंजते अट्टाहासों में
रोती है मासूमियत
मन का रंग स्याह
खून पानी...

वाजिब बात है
कि ख्वाहिशें करती हैं
फरमाईशें बहुत

मुलाकातों के बाद
गुजर जाते हैं लोग
रखकर पांव दिल पर
डर लाजिमी सा है
मौत का...

मोहब्बत और भरोसे का
चंद रुस्वाईयों ने छीन ली
कई वाजिब चाहतों की जमीं

दो बजकर दस मिनट पर
बर्फीले पानी के साथ
गटकना सेरीडॉन
महज समझौता नहीं होता।