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समझ / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
धरम पूळै
अर
बिरमपुरी रै
बीच मांय
बितैड़ी म्हारी
जिंदगाणी
म्हनैं अब
अकारथ लागै।
प्याऊ रो पुन्न
अर
दो रूपिया
घर दीठ
धरमादै री कथा
म्हनैं अबै,
आयी है समझ
घणी मोड़ी।
हैली-दर-हैली
उण रै
बधतै ब्यौपार री
पौं बारा माथै
गांव इचरज करै
अर
भोळा-स्याणा
कैंवता रैवै
धरम री जड़
हरी हुवै।