सुबह के वक़्त बिना किसी इत्तला के
एक्सप्रेस दाख़िल हुई स्टेशन में बर्फ़ से ढकी हुई
मैं प्लेटफ़ार्म पर खड़ा हुआ, कोट के कॉलर उठे हुए
प्लेटफ़ार्म ख़ाली था
स्लीपर क्लास का एक दरीचा मेरे सामने आकर रुका
उसके परदे हटे हुए
निचली बर्थ पर एक हसीन औरत सोई हुई,
धुँधली रोशनी में
उसके भूरे सुनहरे बाल
उसकी बरौनियाँ नीलगूँ