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समयगंधा / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
तुमसे मिलकर
ऐसा लगा जैसे
कोई पुरानी और प्रिय किताब
एकाएक फिर हाथ लग गई हो
या फिर पहुंच गया हूं मैं
किसी पुराने ग्रंथागार में
समय की खुशबू
प्राणों में भर गई
उतर आया भीतर
अतीत का चेहरा
बदल गया वर्तमान
शायद भविष्य भी ।