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समय: एकटा आन्हर साँप / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
समय: एक टा आन्हर साँप, नहि बुझैत जे ककरा कटैत छी।
समय: एक टा अन्हार रस्ता-एक, अहाँ, ओ,
नहि जनैत अछि क्यो जे किएक हम सभ जाय रहल छी कत’।
समय एक टा आन्हर साँप, समय एक टा अन्हार रस्ता। आ, व्यक्ति
अजगरक पेटमे छटपटाइत पक्षी।
आ, व्यक्ति चौरस्तापर मरल पड़ल कुकुर-केवल, मृत आँखिमे
अभिव्यक्ति।
केवल, मृत आँखिमे पसरल सौंसे इतिहास, सभ टा परम्परा
विक्षिप्त वराहक दीर्घ दन्तपर राखल सौंसे वसुन्धरा
आ, चारू कात समुद्र। चारू कात समुद्र।
अजगरक पेटमे छटपटाइत पक्षी उड़िक’ कत’ जायत? आन्हर साँप
की पाबि सकत पुनः अपन पातर विवर?
अन्हार रस्ता की हमरासभकेँ ल’ जायत ज्योति-नगर?
(मिथिला मिहिर: 3.2.63)