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समय अइसन हवे मरहम कि अपने घाव भर जाला / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

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समय अइसन हवे मरहम कि अपने घाव भर जाला
कठिन जीयल बुझइलो पर ई सबमें चाव भर जाला

ई जिनगी धार नदिया के रूकी ना घाट पर आके
लहर के साथ में बह के कबो कोई ना पछताला

विरह आ मिलन के मिल के बनल ई जिन्दगी अइसन
कबो दुखिया जिया होला, कबो गलहार वरमाला

ना कोई बा पराया सबके मन में भ्रम पलल बाटे
खुदे अपने बुझा जाला पड़ेला लोग से पाला

जे आपन बन कसम खाता निभाही साथ जिनगी भर
डगर में पाँव डोलत बा पियत में कष्ट के प्याला

सही राही उहे बाटे चलेला पाँव पर अपना
जहाँ जइसन समय आवे टपत जाला नदी-नाला