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समय और शब्द / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
आखिर शब्दों की भी
होती है सीमा
नदी, पर्वत और दरख्त की तरह;
नहीं होते वे
उन्मुक्त आकाश की तरह
असीम और अथाह ।
अर्थ के लिए
हदों का होना भी
जरूरी होता है कभी-कभी
जहाँ शब्द खत्म होते हैं
कविता वहीं से शुरू होती है।
काल को
कविता की हद कहें तो
बेजा नहीं होगी बात
समय से परे
नहीं होती कोई कविता
मुगालता ही तो है
कालजयी होना
दरअसल समय ही तो
कविता का मतलब होता है
मगर निरंकुश फि र भी नहीं
क्योंकि समय भी तो
आखिर एक शब्द ही है।