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समय गुज़रना है बहुत / विजयशंकर चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
अभी बहुत गुज़रना है समय
दसों दिशाओं को रहना है यथावत
खनिज और तेल भरी पृथ्वी
घूमती रहनी है बहुत दिनों तक
वनस्पतियों में बची रहनी हैं औषधियाँ
चिरई-चुनगुन लौटते रहने हैं घोसलों में हर शाम
परियाँ आती रहनी हैं बेख़ौफ़ हमारे सपनों में ।
बहुत हुआ तो क़िस्से-कहानियों में घुसे रहेंगे सम्राट
पर उनका रक्तपात रहना है सनद
और वक़्त पर हमारे काम आना है
बहुत गुज़रना है समय अभी ।