भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समय से यूँ हूँ परे आनंदमय आभास हूँ / मंजुला सक्सेना
Kavita Kosh से
समय से यूँ हूँ परे आनंदमय आभास हूँ
मैं उमड़ते बादलों-सा सिन्धु का उल्लास हूँ
कल्पना हूँ, कामना हूँ या किसी की प्यास हूँ
चन्द्रमा की चाँदनी या फूल का वातास हूँ
शाश्वती सौरभ भरी बासंती मधुमास हूँ
इन्द्रधनुषी रंगों-सी रागिनीमय श्वास हूँ
भावना से सिक्त उर का एक बस उच्छ्वास हूँ