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समय हुआ कैसा / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
समय हुआ कैसा है, एक तेरे बिन
सूली पर टंगी रात और टंगा दिन।
कस्तूरी यादों की गन्ध लिए आँखें
मन-पक्षी मौन हुआ, बन्द किए पाँखें
धीरज, कपूर हुआ कैसे यह राखें
अपनी हर साँस लगे, जैसे हो-ऋण।
स्वर्ण-पटी पर ही ज्यों रेखा हो सोने की
आँखों में यादें ले, रातें हैं रोने की
आशाएँ शेष हुई भोर कभी होने की
सोया है रो-रो मन, दुख सारे बिन।
नागफनी बन कर, सब सपने, छितराये
आँखों में आखिर सौ जंगल उग आये
रौशनी की चाहत में मन क्यों चिल्लाये
जीवन के बाकी दिन, अँगुली पर गिन।